👹 तिरिभिन्नाट एक्सप्रेस 👹
भिया राम 🙏
आज हाजिर हुआ बड़े दिन बाद..मन हुआ मकर संक्रांति यानी संक्रात पे कुछ लिखा जाये..
..क्योंकि अब तो न इस त्यौहार की कोई रंगत बची..और न कोई उत्साह..बस शगुन हो गया नाम मात्र का..
..औलाद होन की पढ़ाई..और दूसरी तरफ महंगाई..टूटते संयुक्त परिवार..ठीकरे (मोबाइल) मे भराती हमारी खेप.. मोहल्ले बन गये कॉलोनी..और सबसे बड़ा ये के अपने घर के इक्का दुक्का बच्चे सब जिगर के टुकड़े तो गिर पड़ जाये इसलिए “अपने को नी जाना” वाली बात…
ऐसा नी है के पेले अपने टाइम अपन कोई पूर मे से बे के आये थे..पर फिर बी अपने माँ बाप इतने असुरक्षित नी रेते थे..
..अब तो संक्रात के दिन पे 7-8 बजे से पतंगबाजी शुरु होती है..अपना तो पाव भर का दिन हो जाता था 7 बजे..
..मजाल है के सूरज अपने से पेले निकल जाए..न परीक्षा की चिंता..न काले होने का डर..ने अब तो सन स्क्रीन क्रीम चौपड़ के..चश्मा टोपी लगा के भेजती मां होन..
पेले दिसंबर से जो शुरु होते..लूट लूट के खजाना भेला कर लेते..शाम को दोस्त मिलते तो गंभीर चर्चा करते.. फलानी कम्पनी का गट्टा अच्छा आ रिया..ढिमकी कम्पनी का तार अच्छा रेता..कोई सें (ढील) कोई खेंच का ज्ञाता बनता..डोर सूतने की लोकेशन पे बात करते..ने जिसके यां से सायकिल देने की हां हो जाती वो पीवर फूफाजी हो जाता..
बात बात पे पोमा जाता..”ओये मै जा रिया सायकिल वापिस लेके”
ने सब उसको ऐसे मानते जैसे बेन की बारात लोट री होये..
भिया बात बी ऐसी गंभीर थी..सायकिल चली जाए तो सूतो कैसे फिर डोर 🤣
जैसे तैसे सूत के सुखा लाते..ने लेट घर मे घुसते तो एक न एक की सुताई के समाचार जरूर प्राप्त हो जाते।
और सबसे बड़ा भाव खाती घर की बेन होन..उचका पकड़े कौन वो अकड़ जाये तो..
तो उसको संक्रात के आसपास सेट रखना पड़ता..ने इम्पोर्टेन्स फील करवाने के लिए लप्पक पतंग उसको बीच बीच मे पकड़वाना बी पड़ती 🤣
और अपनी पतंग कट जाये तो उसका दोष उसी को जाता के उचका ढंग से नी पकड़ा..नी तो 12-15 पेंच काटता..🤣🤣
..न खाने की परवाह..न नहाने और जाने( 😜) की सुध..
..और अब ये शायद ही कहीं बचा हो..अब तो सब त्यौहार बस एक केलेंडर की तारीख है..धर्म का बंधन न होता तो ये भी खत्म था..अब चायना डोर का विरोध है..जो बेचेगा वो पकड़ायेगा..जो खरीदेगा उसका मकान बी तोड़ा जायेगा..पर जो बना रिया वो तो बनाएगा..🤣
400 का माल अब 1500 मे बेचेगा..पर वो पकड़ मे नी आएगा..
..पर अब बारी आपकी और हमारी है..शने शने खत्म होते त्योहारों को बचाने आगे आना होगा..ये त्यौहार सिर्फ एक तारीख नही..बल्कि एक संस्कार की परम्परा है..तो आइये हम भी इस संक्रात उसी पुराने बचपन को छतों पर लेकर उतरें..उस बचपन का मेल आज के इस बचपन से करवाएं..कुछ उनसे सीखें..कुछ उनको सिखाएं..उल्लास से सूर्य देव का उत्तरायण “पर्व” की तरह मनाएं।
सभी को अनंत शुभकामनाएँ 🙏🏻
विकास शर्मा
दैनिक अमर श्याम/
तिरिभिन्नाट एक्सप्रेस
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