कारगिल युद्ध मे पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया था शहीद बलराम जोशी ने

शहादत से पहले 8 घुसपैठियो को उतारा था मौत के घाट

उज्जैन। पूरा देश आज कारगिल विजय दिवस के शौर्य में डूबा हुआ है। इस शौर्य से उज्जैन का भी गहरा नाता है। युद्ध के दौरान उज्जैन के वीर सपूत बलराम जोशी ने भी पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते हुए अपने प्राणों की हंसते-हंसते आहूति दे दी थी। 11 जुलाई 2000 को रातभर जम्मू-कश्मीर की नाल चौकी पर दोनों सीमाओं से चली फायरिंग के बाद अलसुबह पाकिस्तान से छोड़े गए राकेट लांचर से वह शहीद हुए थे। इस दौरान वे सीमा सुरक्षा बल की 163 वी बटालियन बीएसएफ एम वाय बैंगलोर पोस्ट राजौरी जम्मू कश्मीर मे उप निरीक्षक के पद पर थे तब बलराम की उम्र केवल 26 साल थी। कारगिल युद्ध के दौरान देशभक्ति का जज्बा उज्जैनवासियों में भी दिखाई दिया था। शहीद की पार्थिव देह लाने से अंतिम यात्रा तक मे जन जन का अपार जनसैलाब उमड़ा था।
शहीद परिवार के पं. राजेश जोशी के अनुसार जम्मू कश्मीर के पूंछ राजौरी जिले से 50 किमी दूर नाल चौकी पर दुश्मनों से लोहा लेते समय शहर का ये सपूत भारत मां को समर्पित हुआ था। तिरंगे में लिपटी उसकी देह देखकर हर कोई शौर्य से भर गया लेकिन आंखों के आंसू रोक नहीं पाया था। वन विभाग से सेवानिवृत्त रहे बलराम के पिता राधेश्याम जोशी व उनकी माताजी सरजू देवी का देहांत हो चुका है। बलराम परिवार के इकलौते पुत्र थे, परिवार मे अब उनकी तीन बहने है।

बातचीत मे बताते थे – चौकी के चारो तरफ है पाक बॉर्डर
बलराम जोशी जहां तैनात था वह चौकी जूते की नाल की तरह थी। कई किमी पैदल चलकर वहां तक जाना पड़ता था। इस चौकी के चारों तरफ पाकिस्तान की बॉर्डर थी। पाक के दूसरे भाग ऊंचाई पर होने से भारत के सैनिकों को जवाबी हमले में काफी दिक्कत आती थी। युद्ध के दौरान बलराम बातचीत में ये सब बातें बताते रहते थे। शहादत से पहले उन्होने 8 घुसपैठियो को मार गिराया लेकिन रॉकेट लांचर की चपेट मे आने से वे वीरगति को प्राप्त हुए थे।

टेलीग्राम से आई थी शहादत की सूचना
अमर शहीद बलराम जोशी की शहादत की सूचना परिवारजनो को टेलीग्राम के माध्यम से लगी थी। जिसे बीएसएफ व जम्मू कश्मीर पुलिस ने संयुक्त रूप से भेजा था। बलराम जोशी की शहादत की खबर लगने पर परिवार तो गमगीन था ही लेकिन इस शहादत मे शहरवासियो ने भी शहीद के परिजनों का गम बांटने के लिए 2 दिनों तक शहर बंद रखा था और 13 जुलाई को जब अमर शहीद बलराम जोशी का पार्थिव शरीर उज्जैन आया तो उनके बहादुरगंज स्थित निवास पर श्रद्धांजलि देने वालो की कतार माधव कॉलेज तक पहुॅच गई थी।

शहादत के 15 दिन पहले आए थे परिजनो से मिलने
अमर शहीद बलराम जोशी जम्मू कश्मीर की पुंछ राजौरी जिले से 50 किलोमीटर दूर नाल चौकी पर पदस्थी के 15 दिनो पहले ही परिजनो से मिलने उज्जैन आए थे। जहां उन्होंने परिजनों को बताया था कि बीएसएफ के जवानो की स्थाई पोस्टिंग के पहले उन्हें 3 प्रदेशो की अतिसंवेदनशील बॉर्डर पर तैनात किया जाता है। चूँकि जम्मू कश्मीर की नाल चौकी पर पोस्टिंग की सूचना बलराम जोशी को पूर्व में ही थी इसीलिए वह गुजरात के रण और राजस्थान की बॉर्डर पर अपनी अगली पोस्टिंग होने की जानकारी भी परिजनो को दे गए थे।

पिता की इच्छा की पूरी
उज्जैन के संख्याराजा प्रसूति गृह मे 30 नवंबर 1974 को बलराम जोशी का जन्म तीन बहनों के बाद चौथे स्थान पर बड़ी ही मान मन्नतो के बात हुआ था। चूँकि उनके पिता राधेश्याम जोशी वन विभाग मे कार्यरत थे इसीलिए उनकी प्राथमिक शिक्षा खंडवा के सरस्वती शिशु मंदिर मे हुई थी। जिसके बाद वह उज्जैन के लोकमान्य तिलक स्कूल और साइंस कॉलेज में भी शिक्षारत रहे। कुछ समय तक बलराम ने इंदौर में एवरेडी व निप्पो सेल की कंपनी में कार्य किया लेकिन उनके पिता की इच्छा थी कि बलराम कुछ ऐसा काम करें जिससे पूरे देश में जोशी परिवार का नाम रोशन हो जाए इसीलिए बलराम ने अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए सेना में जाने का निर्णय लिया था। जिसे कड़ी लगन व मेहनत के बाद उन्होंने पूरा भी किया।

शहीद पार्क पर लगी है अमर शहीद की प्रतिमा
फ्रीगंज क्षेत्र के शहीद पार्क पर अमर शहीद बलराम जोशी की प्रतिमा स्थापित है जहां उनके जन्मदिवस और पुण्यतिथि पर शहरवासी उन्हे श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं।

इकलौते पुत्र को भेज दिया था सेना मे
शहीद बलराम जोशी की बहन आनंदमयी ने बताया कि भाई बलराम को सेना मे भेजने के दौरान परिवार ने पहले काफी विचार किया लेकिन जब वह वहां ज्वाइन हुआ तो हर कोई हमे सम्मान से सलाम करता था। जिगर के टुकड़े बलराम को 22 साल पहले जब खोया था और उसकी पार्थिव देह घर आई तो पूरा शहर उसे श्रद्धासुमन अर्पित करने उमड़ा। तब छाती गर्व से चौड़ी हो गई थी।  

शहादत व जन्मदिवस पर पुष्पांजलि अर्पित करते है शहरवासी
बीएसएफ (बॉर्डर आॅफ सिक्युरिटी फोर्स) में उपनिरीक्षक रहते बलराम जोशी वर्ष 2000 मे 11 जुलाई को शहीद हुए थे। 22 साल बीत गए, लेकिन हर साल 11 जुलाई व 30 नवंबर को शहीदपार्क स्थित आदमकद प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने सैकड़ों लोग पहुंचते हैं।

बहने आज भी बांधती हैं राखी
बलराम की तीन बड़ी बहने हैं। उन्हें अपने भाई की शहादत पर गर्व है। वे हर साल रक्षाबंधन पर उनकी प्रतिमा को राखी बांधने पहुंचती हैं। मिष्ठान वितरण होता है, बैंड भी बजता है। उज्जैन के शहीद पार्क में स्थापित प्रतिमा पर बलराम के जन्मदिवस और शहादत दिवस पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। परिवार के लोग बताते हैं कि जब बलराम के विवाह संबंध की बात करते थे, तो वह एक ही जवाब देता था कि बीएसएफ में भर्ती होने के साथ ही शादी मौत से हो गई है।
#तिरिभिन्नाट #tiribhinnat

Credit- ravi sen 9425000734

Loading

  विकास शर्मा

संपादक:विकास शर्मा

मो.:91-98270 76006